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मन्त्र यन्त्र तन्त्र

योगीराज यशपाल जी

प्रकाशक : रणधीर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17151
आईएसबीएन :0

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"तन्त्र के मार्गदर्शक दीप : भौतिक संसार से परे प्रकाश फैलाते"

परमश्रद्धेयास्पद, परमादरणीय, अष्टांग योगानुष्ठान्‌ पारंगत, विचार कक्षा के अन्तःस्थल पर आसीत, विदित वेदितव्य महामहिमाशाली गुह्य विद्या के गहवर में अद्भुत अलौकिक गुह्य व्यक्तित्व एवं भारतीय संस्कृति की तन्त्र-पताका के ऊर्ध्वारोहण में स्वयं को न्यौछावर कर देने वाले, संसार सागर के सशक्त पोत-श्री योगीराज यशपाल जी चिरस्मरणीय हैं।

काल प्रवाह के अविराम पथ पर दैव संयोग से आपका आगमन एवं स्वयं आपकी कृपा से अनगिनत जिज्ञासुओं व साधकों को प्राप्त तन्त्र सिद्धि, आपके विलक्षण व्यक्तित्व की घोषणा करती है।

आपके व्यक्तित्व की समालोचना करना किसी भी साधारण मानव के लिए असाधारण है किन्तु आपके द्वारा प्रदत्त ज्ञान एवं आपकी सौम्य मुखाकृति से आभासित व्यक्तित्व के प्रति आकृष्टता, किसी भविष्यगामी घटना का संकेत अवश्य है।

तन्त्र के विषय में व्याप्त विषम भ्राँतियों का परिहार करने एवं तन्त्र का विस्मृत उद्देश्य प्रस्तुत करने में प्रयासरत आपका जीवनकाल तन्त्रमार्गियों के लिए आदर्श है। आपके ज्वलन्त मस्तिष्क से संचालित प्रचण्ड लेखनी द्वारा अन्वेषित अनेकों ग्रन्थ जनमानस को जीवन-दिशा देने में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।

तन्त्र क्षेत्र के अरण्य मार्ग में तपाग्रसर ज्ञान पिपासुओं को ज्ञान-सुधारस पिलाकर तृप्त कराने वाली यह दैदीप्यमान विभूति समय की शिला पर भविष्य के हस्ताक्षर है। कालचक्र की सीमाओं से परे तन्त्र विज्ञान के वातायनों में मन्त्र वायु का संचार करते हुए मन्त्र साधना के वास्तविक स्वरूप को प्रकाशित करने वाली यह कृति साधकों के लिए ज्ञान-सोत है। समय के रथ-चक्र की निर्बाध गति से प्रेरित विनम्रता और विद्वता का अनुपम समावेश, गुरुश्रृंखला में अग्रगण्य श्री योगीराज यशपाल जी की असंख्य कीर्ति रश्मियों की अवर्ण्य ज्योति से लाभान्वित यह जगत सदैव उनका ऋणी रहेगा।

आत्मा-परमात्मा के सम्बन्ध को भौतिक उपलब्धियों, भौतिक आनन्दों एवं भौतिक मान्यताओं से मुक्त कर उदात्त चिन्तन की अविरल धारा प्रवाहित करने वाले इस महाप्राण को शत्‌ शत्‌ नमन्‌।

– शिष्यों की ओर से

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